इस्राएल की यात्रा
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एक आत्मिक यात्रा की समझ पाने के लिये, हमे इस्राएलियों की यात्रा का अध्ययन करना चाहिये मिस्र से प्रतिज्ञा के देश तक और अन्ततः सिस्योन पर्वत तक। हज़ारों वर्ष पूर्व की गई यह ऐतिहासिक यात्रा हमारे विश्वासी होने के रूप में पृथ्वी से स्वर्ग तक की यात्रा का एक प्रकार है, और मसीह में नवजात शिशु से परिपक्व विश्वास में माता पिता होने तक। यह एक मार्ग मानचित्र के रूप में सहायक होता है दिखाने के लिये कि हम कहाँ से आये हैं, अब हम कहां हैं, और हम कहां जा रहे हैं।
इखएलियों की यात्रा एक ऐतिहासिक यात्रा थी। इब्रहीम, इसहाक व याकूच के वंशजों ने मित्र देश को छोड़ा जहां वे दासत्व में थे। परमेश्वर ने उन्हें मूसा भविष्यद्वक्ता के हाथों छुड़ाया, जिसने फिर परमेश्वर की सुहक्षा में उनकी मिस्र से मोआब के मैदान तक अगुवाई की एक काल जो चालीस वर्ष से अधिक का था ।
मूसा की मृत्यु के बाद, उनको एक नया अगुवा दिया गया-यहोशू, जो उन्हे यरदन पार प्रितिज्ञा के देश में ले गया। परन्तु उन्होंने पूर्ण देश को नहीं जीता और विश्राम करने लगे, बहुत वर्षों बाद जब तक परमेश्वर ने यात्रा पूरी करने के लिये दाऊद को नहीं उठाया। दाऊद ने देश में तव शत्रुओं को पराजित किया, और इस्राएल को उनके अन्तिम विश्राम स्थल, परमेश्वर के पर्वत सिय्योन पर पहुंचाया ।
इस्राएल की यात्रा में तीन मुख्य विषय वस्तुओं पर विचार किया जायेगा। जब हम एक एक चरण इस्राएलयों की यात्रा को देखते हैं, तो मूसा के जीवन से उस तैयारी को भी देखेंगे जो एक अगुवे के जीवन की होती है जिसका प्रयोग परमेश्वर अपने लोगों की यात्रा में अगुवाई के लिये चुनता है। इसके अतिरिक्त, हम प्रभु के सात पब्चों पर भी विचार करेंगे, जो यात्रा में चुने हुए हैं और आज मसीह की कलीसिया के लिये उनके महत्व परा
यह पुस्तक इस प्रार्थना के साथ प्रस्तुत की जाती है कि वहीं प्रभु जो इस्राएलियों को मित्र सेसिय्योन तक लाया, उसी प्रकार आपको भी, प्रिय पाठक, आत्मिक मिस (यह जगत) से सिय्योन तक लाएगा, जो आत्मिक परिपक्वता व परमेश्वर की महिमा की प्रस्तुति करता है।
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